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जल संसाधन, सिंचाई एवं बहुद्देश्यीय परियोजना(Water Resource,Irrigation and Multipurpose Projects)

 


सामान्य परिचय (General Introduction)



जल हाइड्रोजन तथा ऑक्सीजन का यौगिक है। पृथ्वी के लगभग 71 प्रतिशत भू-भाग पर जल का विस्तार है, जिसके अंतर्गत महासागर, सागर, झीलें, नदियाँ, ग्लेशियर इत्यादि सम्मिलित हैं। यह मनुष्यों, जीव-जंतुओं, पादपों की जीवनोपयोगी एवं मूलभूत आवश्यकता का एक प्रमुख प्राकृतिक संसाधन तथा बहुमूल्य राष्ट्रीय
संपदा है।

वैश्विक ताज़े पानी में भारत का कुल 4% हिस्सा है, जबकि यहाँ विश्व की लगभग 17% आबादी रहती है। भारत सरकार के ऑँकड़ों के अनुसार, वर्ष 2001 और 2011 में प्रति व्यक्ति औसत वार्षिक जल उपलब्धता क्रमश: 1,816 क्यूबिक मीटर्स और 1,545 क्यूबिक मीटर्स (घन मीटर) थी; जो वर्ष 2021 तथा वर्ष 2025 में घटकर क्रमश: 1,486 घन मीटर एवं 1,340 घन मीटर तक रह जायेगी।

जल संसाधनों का कुशलतम उपयोग तथा अधिकतम विकास अत्यंत महत्त्वपूर्ण है। इसके दो प्रमुख स्रोत हैं-1. धरातलीय जल; 2. भूमिगत जल धरातलीय जल संसाधन (Surface Water Resources) धरातलीय जल के प्रमुख स्रोत नदियाँ, झीलें, जलाशय इत्यादि हैं।

मैदानी नदियाँ सिंचाई, पेयजल के लिये विशेष रूप से उपयोगी हैं। प्राप्त आधिकारिक ऑकड़ों के अनुसार देश का लगभग 50% से ज़्यादा सिंचित क्षेत्र उत्तर प्रदेश पंजाब और तमिलनाडु के अंतर्गत
आता है।

हिमालय के पर्वतीय क्षेत्रों तथा प्रायद्वीपीय पठार से प्रवाहित होने वाली नदियाँ विशेष रूप से जलविद्युत उत्पादन के लिये महत्त्वपूर्ण हैं। इन नदियों पर विभिन्न बहुउद्देशीय परियोजनाएँ चलाई जा रही हैं।
भूमिगत जल संसाधन (Ground Water Resources) 'भूमिगत जल' से अभिप्राय है वह पानी जो चट्टानों और मिट्टी
के माध्यम से रिसकर धरातल की निचली सतहों में भंडारित होता रहता है। जिन चट्टानों में यह जल संगृहीत होता है उन्हें 'जलीय चट्टानी परत' कहते हैं। देश के विभिन्न भू-भागों में भौम जल का विकास समान रूप से नहीं हुआ है। कुछ क्षेत्रों में भौम जल प्रचुर मात्रा में उपलब्ध हैं तो वहीं कुछ क्षेत्रों में इनकी कमी है।

भौम जल के विभिन्न कार्यों में अति दोहन से भी इसमें कमी आई है। भूमिगत जल संसाधन अनेक कारकों से प्रभावित होते हैं, जिसमें जलवायवीय दशाएँ, उच्चावच, भूगर्भिक संरचना तथा जलीय दशाएँ सम्मिलित हैं। इन विशेषताओं के आधार पर भारत को मुख्यत: आठ भूमिगत जल प्रदेशों में बाँटा गया है-
1. प्री-कैंब्रियन रवेदार शैलों का प्रदेश यह देश के आधे से अधिक भू-भाग पर विस्तृत है। इसके अंतर्गत
तमिलनाडु, तेलंगाना, आध्र प्रदेश, छत्तीसगढ़ के दंडकारण्य का क्षेत्र, बुंदेलखंड, राजस्थान इत्यादि सम्मिलित हैं। यहाँ जल संसाधनों की कमी है।


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