स्थलमंडल (Lithosphere) |
स्थलमण्डल सम्पूर्णपृथ्वी के क्षेत्रफल का 29% है। पृथ्वी के अन्दर तीन मण्डल पाए जाते हैं। ऊपरी मण्डल को भूपर्पटी अथवा क्रस्ट कहा जाता है। इसकी मोटाई 30 से 100 किमी तक होती है। महाद्वीपों में इसकी मोटाई अधिक जबकि महासागरों में या तो क्रस्ट होती ही नहीं अगर होती है तो बहुत पतली होती है। क्रस्ट का ऊपरी भाग स्थलमण्डल का प्रतिनिधित्व करता है। जिन पदार्थों से क्रस्ट का निर्माण होता है वे जैव समुदाय के लिए बहुत महत्त्वपूर्ण हैं। क्रस्ट का निर्माण मुख्यतः लोहा, ऑक्सीजन, सिलिकॉन, मैग्नीशियम, निकिल, गंधक, कैल्शियम तथा ऐलुमिनियम से होता है। क्रस्ट में एल्युमिनियम तथा सिलिका की मात्रा अधिक होती है। क्रस्ट के नीचे के दूसरे मण्डल को मैण्टिल कहा जाता है जिसकी निचली सीमा 2900 किमी से पृथ्वी के केन्द्र तक है।
चट्टान
उत्पत्ति के आधार पर ये तीन प्रकार की होती है-
ग्रेनाइट:इन चट्टानों के निर्माण से मैग्मा धरातल के ऊपर न पहुँचकर अंदर ही जमकर ठोस रूप धारण कर लेता है जिसके ठंडा होने की प्रक्रिया बहुत धीमी होती है क्योंकि अन्दर का तापमान अधिक होता है और बनने वाले क्रिस्टल काफी बड़े होते हैं।
बेसाल्ट:ये समुद्री सतह पर पाये जाते हैं।
ज्वालामुखी:ज्वालामुखी विस्फोट के कारण मैग्मा के बाहर आकर जमने से चट्टानें बनती है।
अवसादी चट्टानपर्वत या पहाड़
पर्वत या पहाड़ पृथ्वी पर प्राकृतिक रूप से ऊंचा उठा हुआ हिस्सा होता है. ये ज्यादातर आकस्मिक तरीके से उभरा होता है. पर्वत ज्यादातर एक लगातार समूह में होते हैं. उत्पत्ति के अनुसार पर्वत चार प्रकार के होते हैं:
ब्लॉक पर्वत (Block mountain)- जब चट्टानों में स्थित भ्रंश के कारण मध्य भाग नीचे धंस जाता है और अगल-बगल के भाग ऊंचे उठे लगते हैं, तो वो ब्लॉक पर्वत कहलाते हैं. बीच में धंसे भाग को रिफ्ट घाटी कहते हैं. इन पर्वतों के शीर्ष समतल और किनारे तीव्र भ्रंश-कगारों से सीमित होते हैं. इस तरह ते पर्वत के उदाहरण हैं- वॉस्जेस (फ्रांस), ब्लैक फॉरेस्ट (जर्मनी), साल्ट रेंज (पाकिस्तान)
अवशिष्ट पर्वत (Residual mountain)- ये पर्वत चट्टानों के अपरदन के फलस्वरुप निर्मित होते हैं. जैसे- विन्ध्याचल और सतपुड़ा, नीलगिरी, पारसनाथ, राजमहल की पहाड़ियां (भारत), सीयरा (स्पेन), गैसा और बूटे (अमेरिका)
संचित पर्वत (Accumulated mountain)- भूपटल पर मिट्टी, बालू, कंकड़, पत्थर लावा के एक स्थान पर जमा होते रहने के कारण बनने वाला पर्वत संचित पर्वत कहलाता है. रेगिस्तान में बनने वाले बालू के स्तूप इसी श्रेणी में आते हैं.
वलित पर्वत (Fold mountain)- ये पृथ्वी की आन्तरिक शक्तियों से धरातल की चट्टानों के मुड़ जाने से बनते हैं. ये लहरदार पर्वत होते हैं, जिनपर असंख्य अपनतियां और अभिनतियां होती हैं. जैसे- हिमालय, आल्पस यूराल, रॉकीज और एण्डीज.
वलित पर्वतों के निर्माण का आधुनिक सिंद्धात प्लेट टेक्टॉनिक (Plate Tectonics) की संकल्पना पर आधारित है.
जहां आज हिमालय पर्वत खड़ा है वहां किसी समय में टेथिस सागर नामक विशाल भू-अभिनति थी. दक्षिण पठार के उत्तर की ओर विस्थापन के कारण टेथिस सागर में बल पड़ गए और वह ऊपर उठ गया. इसी से संसार का सबसे ऊंचा पर्वत हिमालय का निर्माण हुआ.
भारत का अरावली पर्वत विश्व के सबसे पुराने वलित पर्वतों में गिना जाता है. इसकी सबसे ऊंची चोटी माउण्ट आबू के पास गुरुशिखर है. इसकी समुद्रतल से ऊंचाई 1722 मीटर है. कुछ विद्वान अरावली पर्वतों को अवशिष्ट पर्वत का उदाहरण मानते हैं.
पठार
पठार धरातल का वह विशिष्ट स्थल रूप है, जो कि अपने आस-पास के स्थल से पर्याप्त ऊँचाई का तथा जिसका शीर्ष भाग चौड़ा और सपाट होता है। सामान्यतः पठार की ऊँचाई 300 से 500 फीट तक होती है।
कुछ अधिक ऊँचाई वाले पठार हैं- 'तिब्बत का पठार' (16,000 फीट), 'बेलीविया का पठार' (12,000 फीट) तथा 'कोलम्बिया का पठार' (7,800 फीट)।
पठार प्राय: निम्न प्रकार के होते हैं-
अंतपर्वतीय पठार - पर्वतमालाओं के बीच में बने पठार। ऐसे पठार चारों ओर से घिरे रहते हैं। जैसे- तिब्बत का पठार, बोलीविया, पेरू इत्यादि के पठार।
पर्वतपदीय पठार - पर्वत के तल और मैदान के बीच उठे समतल भाग।
महाद्वीपीय पठार - जब पृथ्वी के भीतर जमा लैकोलिथ भू–पृष्ठ के अपरदन के कारण सतह पर उभर आते हैं, तब ऐसे पठार बनते हैं। ऐसे पठारों का निर्माण पटल विरूपणी बलों द्वारा धरातल के किसी विस्तृत भू-भाग के ऊपर उठ जाने से होता है। जैसे—दक्षिण का पठार, भारत के कैमूर, रांची तथा कर्नाटक के पठार।
तटीय पठार - समुद्र के तटीय भाग में स्थित पठार।
चलन क्रिया के फलस्वरूप निर्मित पठार, जैसे- राजगढ़ गुम्बद (भारत)।
पीडमॉण्ट पठार - उच्च पर्वतों की तलहटी में स्थित पठारों को ‘पीडमॉण्ट’ पठार कहते हैं। जैसे-पीडमॉण्ट (सं. रा. अमेरिका), पेटागोनिया (दक्षिणी अमेरिका) आदि।
कुछ महत्त्वपूर्ण तथ्य -मैदान
मैदान 500 फ़ीट से कम ऊँचाई वाले भू-पृष्ठ के समतल भाग को कहा जाता है। मैदानों में ढाल प्राय: बिल्कुल नहीं होता है और इस प्रकार के क्षेत्रों में आकर नदियों के प्रवाह में भी कमी आ जाती है। धरातल पर मिलने वाले अपेक्षाकृत समतल और निम्न भू-भाग को मैदान कहा जाता है। इनका ढाल एकदम न्यून होता है।
मैदान अनेक प्रकार के होते हैं, जैसे-
अपरदनात्मक मैदान - ऐसे मैदानों का निर्माण अपक्षय तथा अपरदन की क्रियाओं के परिणामस्वरूप होता है। नदी, हिमानी, पवन जैसी शक्तियों के अपरदन से इस प्रकार के मैदान बनते हैं। जैसे उत्तरी कनाडा, उत्तरी यूरोप, पश्चिमी सर्बिया आदि। ये मैदान भी निम्नलिखित प्रकार के होते हैं-
लोएस मैदान - हवा द्वारा उड़ाकर लाई गई मिट्टी एवं बालू के कणों से निर्मित होता है।
कार्स्ट मैदान - चूने पत्थर की चट्टानों के घुलने से निर्मित मैदान।
समप्राय मैदान - समुद्र तल के निकट स्थित मैदान, जिनका निर्माण नदियों के अपरदन के फलस्वरूप होता है।
ग्लेशियर मैदान - हिम के जमाव के कारण निर्मित दलदली मैदान, जहाँ पर केवल वन ही पाए जाते हैं।
रेगिस्तानी मैदान - वर्षा के कारण बनी नदियों के बहने के फलस्वरूप इसका निर्माण होता है।
निक्षेपात्मक मैदान - अपरदन के कारकों द्वारा धरातल के किसी भाग से अपरदित पदार्थों को परिवहित करके उन्हें दूसरे सथान पर निक्षेपित कर देने से एसे मैदानों की उत्पत्ति होती है। उदाहरण- गंगा-ब्रह्मपुत्र का मैदान (उत्तर भारत), ह्वांगो (चीन) आदि। नदी निक्षेप द्वारा बड़े–बड़े मैदानों का निर्माण होता है। इसमें गंगा, सतलुज, मिसी–सिपी एवं ह्वाग्हों के मैदान प्रमुख हैं। इस प्रकार के मैदानों में जलोढ़ का मैदान, डेल्टा का मैदान प्रमुख है।
रचनात्मक मैदान- रचनात्मक मैदानों का निर्माण पटल विरुपणी बलों के परिणामसवरूप समुद्री भागों में निक्षेपित जमावों के ऊपर उठाने से होता है। जैसे कोरोमण्डल व उत्तरी सरकार (भारत)।
भूकंप
भूकम्प भूपटल का कम्पन अथवा लहर है जो धरातल के नीचे चट्टानों के लचीलेपन या गुरुत्वाकर्षण की समस्थिति में क्षणिक अव्यवस्था होने के कारण उत्पन्न होता है.
ज्वालामुखी
ज्वालामुखी भूपटल पर वह प्राकृतिक छेद या दरार है जिससे होकर पृथ्वी के अन्दर का पिघला पदार्थ, गैस या भाप, राख इत्यादि बाहर निकलते हैं. पृथ्वी के अन्दर का पिघला पदार्थ, जो ज्वालामुखी से बाहर निकलता है, भूराल या लावा (Lava) कहलाता है. यह बहुत ही गर्म और लाल रंग का होता है. लावा जमकर ठोस और काला हो जाता है जो बाद में जाकर ज्वालामुखी-चट्टान के नाम से जाना जाता है. लावा में इतनी अधिक गैस होती है
ज्वालामुखी के प्रकारउदगार अवधि के अनुसार ज्वालामुखी तीन प्रकार के होते हैं.
1-सक्रिय ज्वालामुखी
2-प्रसुप्त ज्वालामुखी
3-मृत या शांत ज्वालामुखी
सक्रिय ज्वालामुखी (Active Volcano) इसमें अक्सर उदगार होता हैं. वर्तमान समय में विश्व में सक्रिय ज्वालामुखियों की संख्या 500 हैं. इनमे प्रमुख हैं – इटली का एटना तथा स्ट्राम्बोली. मैक्सिको (उत्तरी अमेरिका) में स्थित कोलिमा ज्वालामुखी बहुत ही सक्रिय ज्वालामुखी हिं. इसमें 40 बार से अधिक उदगार हो चुका हैं.
प्रसुप्त ज्वालामुखी( Dormant Volcano) जिसमें निकट अतीत में उदगार नही हुआ हैं, लेकिन इसमें कभी भी उदगार हो सकता हैं. इसके उदाहरण हैं –
शांत ज्वालामुखी (Extinct Volcano) ऐसा ज्वालामुखी जिसमें एतिहासिक काल से कोई उदगार नही हुआ है और जिसमें पुनः उदगार होने की संभावना न हो. इसके उदाहरण हैं –
भारत के ज्वालामुखी (Volcano in India)
भारत में कुछ ख़ास जगहों पर ज्वालामुखी विस्फोट देखने मिलता है.
ज्वालामुखी के बारे में रोचक जानकरियाँ
वन
एक क्षेत्र जहाँ वृक्षों का घनत्व अत्यधिक रहता है उसे वन कहते हैं।
वनस्पति/वन के प्रकार
उष्णकटिबंधीय सदाबहार वन -ऐसे वन क्षेत्र हैं जो भूमध्य रेखा के दक्षिण या उत्तर में लगभग 28 डिग्री के भीतर पाए जाते हैं। ये एशिया, ऑस्ट्रेलिया, अफ्रीका, दक्षिण अमेरिका, मध्य अमेरिका, और प्रशांत द्वीपों पर पाए जाते हैं। विश्व वन्यजीव निधि के बायोम वर्गीकरण के भीतर उष्णकटिबंधीय सदाबहार वन को उष्णकटिबंधीय वर्षावन वन (या उष्णकटिबंधीय नम चौड़े पत्ते के वन) का एक प्रकार माना जाता है और उन्हें विषुवतीय सदाबहार तराई वन के रूप में भी निर्दिष्ट किया जा सकता है।
उष्ण कटिबंधीय अर्द्ध पतझड़ वन -150 सेमी से कम वर्षा में होती है । साल, सागवान एवं बांस आदि उष्ण कटिबंधीय अर्द्ध पतझड़ वन में पाए जाते है?
विषुवत रेखीय वन-वृक्ष और झड़ियों का मिश्रण । जैतून, कार्क तथा ओक इस वन के मुखी वृक्ष है ।
टैगा वन - इनकी पतियाँ नुकीली होती है।
टुण्ड्रा वन - टुण्ड्रा वन में उगने वाले वृक्षों की बढोत्तरी कम तापमान और अपेक्षाकृत छोटे मौसम के कारण प्रभावित होती है।
पर्वतीय वन- इस प्रकार के वन उच्च स्थलाकृति वाले हिमालय क्षेत्र में पाए जाते हैं। इस प्रदेश में विभिन्न ऊचाईयों के अनुसार वनों की प्रजातियों में भी भिन्नता पाई जाती है। अधिक ऊँचाई वाले भागों में कोणधारी नुकीली पत्ती वाले वन पाए जाते हैं जो कि 17-18 मीटर से अधिक ऊँचे होते हैं।
प्रमुख घास के मैदान -
1. पम्पास - अर्जेंटीना।
2. प्रेयरी - अमेरिका।
3. वेल्ड - दक्षिण अफ्रीका।
4. डाउन्स - आस्ट्रेलिया।
5. केंटरबरी - न्यूजीलैंड।
6. स्टेपी - ट्यूनेशिया।
प्रमुख रेगिस्तान -
1. सहारा - अफ्रीका।
2. गोबी - मंगोलिया।
3. कालाहारी - बोत्सवाना।
4. तकलामकान - चीन।
5. काराकुम - तुर्कमेनिस्तान।
6. अटाकामा - चिली।
7. थार - भारत व् पाकिस्तान।
- भारत की भौगोलिक स्थिति एवं विस्तार (Geographical location and extent of India)
- भारत की प्रमुख झीलें (Major lakes of India)
- भारत की नदियाँ (Rivers of India)
- भारत के प्रमुख जल प्रपात (Major waterfalls of India)
- भारत की जलवायु (Climate of India)
- भारत की मिट्टियाँ (Soils of India)
- भारत में कृषि (Agriculture in India)
- भारत में सिंचाई (Irrigation in India)
- भारत में खनिज (Minerals in India)
- भारत के प्रमुख उद्योग (Major Industries of India)
- भारत में परिवहन (Transportation in India)
- भारत की जनगणना (Census of India)
- भारत की प्रमुख बहुउद्देशीय नदी घाटी परियोजनाएं (Major Multipurpose River Valley Projects of India)
- भारत में पर्वतीय नगर(Hill cities in india)
- भारत के प्रमुख भौगोलिक उपनाम (Major Geographical Surnames of India)
- भारत की प्रमुख जनजातियां और नृत्य (Major tribes and dances of India)
- भारत का भूगोल प्रश्न एवं उत्तर (India's geography questions and answers)
- भूगोल का अर्थ (Meaning of geography)
- सौर मंडल (Solar System)
- पृथ्वी की गतियाँ (Motions of the earth)
- पृथ्वी की भौगोलिक रेखाएं (Geographic lines of the earth)
- स्थलमंडल (Lithosphere)
- महाद्वीप (Continent)
- जलमंडल(Hydrosphere)
- महासागरीय जलधाराएं (Ocean streams)
- वायुमंडल (Atmosphere)
- विश्व की प्रमुख फसलें एवं उत्पादक देशों की सूची(List of major crops and producing countries of the world)
- विश्व के सर्वाधिक खनिज उत्पादक देश (World's Most Mineral Producing Countries)
- विश्व के औद्योगिक क्षेत्र (Industrial regions of the world)
- विश्व की प्रमुख जनजातियाँ (Major tribes of the world)
- विश्व के प्रमुख देश उनकी राजधानी एवं उनकी मुद्राओं (Major countries of the world, their capital and their currencies)
- विश्व के प्रमुख भौगोलिक उपनाम (World's major geographical surname)
- विश्व के प्रमुख भौगोलिक खोजें (Top World Geographic Searches)
- विश्व के प्रमुख नहरें (Major canals of the world)
- प्रमुख वनस्पतियॉं और उनका वर्गीकरण(Major flora and their classification)
- विश्व के भू-आवेष्ठित देश (Land covered countries of the world)
- विश्व की प्रमुख झीलें (Major lakes of the world)
- विश्व की प्रमुख पर्वत चोटियाँ (Major Mountains of the World)
- विश्व के प्रमुख द्वीप(Major islands of the world)
- विश्व के प्रमुख पठार(Major plateaus of the world)
- विश्व के प्रमुख रेगिस्तान (Major deserts of the world)
- विश्व भूगोल के महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तरी(Important quiz of world geography)
- कंप्यूटर ज्ञान
- जीव विज्ञान
- भौतिक विज्ञान
- रसायन विज्ञान
- भूगोल
- इतिहास
- राजनीतिक विज्ञानं
- उत्तराखंड सामान्य ज्ञान
- करंट अफेयर
- भारतीय फौज के बहादुरों की कहानी
- धार्मिक स्थल
- दर्शनीय स्थल
- उत्तराखंड समाचार
- उत्तराखंड की फोटो
- नई शिक्षा निति
- भरतु की ब्वारी के किस्से - नवल खाली
- ACTRESS PHOTO
- UTTRAKHAND PHOTO GALLERY
- UTTRAKHANDI VIDEO
- JOB ALERTS
- FORTS IN INDIA
- THE HINDU NEWS IN HINDI
- उत्तराखंड से सम्बंधित अन्य कोई भी जानकारी (euttra.com)
- Govt Schemes
Comments
Post a Comment