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कृषि एवं पशुपालन (Agriculture and Animal Husbandary)

 सामान्य परिचय (General Introduction )
    भारत एक कृषि प्रधान देश है तथा कृषि की भारतीय अर्थव्यवस्था में अहम भूमिका है। वर्ष 2011 की जनगणना के आँकड़ों के अनुसार, देश की लगभग 55 प्रतिशत जनसंख्या कृषि और इससे संबंधित गतिविधियों से जुड़ी हुई है और देश के सकल मूल्य संवर्धन (वर्तमान मूल्य पर) 2017-18 में कृषि एवं संबद्ध क्षेत्र की हिस्सेदारी लगभग 17.1 प्रतिशत है। यह एक प्राथमिक क्रिया है जिसके अंतर्गत खेती, पशुपालन एवं मत्स्यपालन तथा वानिकी आदि को शामिल किया जाता है।

भारतीय कृषि की प्रमुख विशेषता यह है कि यह देश की लगभग आधी जनसंख्या का भरण-पोषण करती है तथा कृषि आधारित उद्योगों को कच्चा माल उपलब्ध कराती है, जिनका राष्ट्रीय आय में महत्त्वपूर्ण योगदान होता है। भारतीय कृषि मुख्यत: मानसून पर आधारित होती है, इसलिए इसे 'मानसून का जुआ' भी कहते हैं।

देश में मृदा, जलवायु व कृषि पद्धति में अंतर होने के कारण भिन्न-भिन्न क्षेत्रों में भिन्न-भिन्न खाद्य एवं अखाद्य फसलों का उत्पादन होता है। ऋतुओं के आधार पर भारतीय कृषि को तीन वर्गों खरीफ, रबी और जायद में बाँटा गया है।
खरीफ, रबी तथा जायद की फसलें खरीफ इसके अंतर्गत फसलों को जून से जुलाई तक बोया जाता है तथा सितंबर-अक्तूबर में कटाई की जाती है। ये वर्षा होती हैं।

खरीफ की फसलों के उत्पादन में दक्षिण-पश्चिम मानसूनी वर्षा से लाभ होता है।
* खरीफ की फसलों की बुआई के समय अधिक तापमान और अधिक आर्द्रता की आवश्यकता होती है।
प्रमुख फसलें- धान, सोयाबीन, अरहर, तिल, मूंग, उड़द, लोबिया, रागी, बाजरा, की फसलें ज्वार, मूंगफली, तंबाकू, कपास इत्यादि हैं। रबी
* रबी की फसलों को अक्तूबर-नवंबर तक बोया जाता है तथा अप्रैल- मई तक काटा जाता है। ये शीत काल की फसलें होती हैं।
* रबी की फसलों के उत्पादन में शीतकालीन पश्चिमी विक्षोभ से होने वाली वर्षा सहायक होती है।
* रबी की फसलों को उगाते समय अपेक्षाकृत कम तापमान तथा पकने के लिये अधिक तापमान एवं दीर्घ प्रकाश काल की आवश्यकता होती है।
प्रमुख फसलें- गेहूँ, जौ, मटर, चना, सरसों, आलू, मसूर, अलसी,राई इत्यादि हैं।

जायद    जायद की फसलों को सामान्यत: रबी एवं खरीफ के मध्यवर्ती काल में उगाया जाता है। इस प्रकार जायद फसलों की मार्च में बुवाई कर, जून तक काट लिया जाता है। यह मुख्यत: ग्रीष्म काल की फसलें
होती हैं।
जायद की फसलों में खीरा, ककड़ी, तरबूज, खरबूज, करेला आदि प्रमुख हैं।

कृषि तंत्र
* कृषि को एक 'प्रक्रम' के रूप में देखा जा सकता है, जिसमें मुख्यत: तीन चरण-निवेश, प्रक्रिया एवं निर्गत शामिल हैं। प्रथम चरण में निवेश के तौर पर मशीनरी, बीज, उर्वरक, श्रमिक एवं भौतिक निवेश (सौर प्रकाश, वर्षा, तापमान, मृदा, ढाल) आदि को सम्मिलित किया जाता है।

दूसरा चरण 'प्रक्रिया' के रूप में संपन्न किया जाता है जिसमें जुताई, बुआई, छिड़काव, सिंचाई, निराई और कटाई आदि आते हैं।
* तीसरे चरण में 'निर्गतों' के अंतर्गत उपरोक्त दोनों चरणों से प्राप्त जिसमें फसल, ऊन, डेयरी उत्पाद, कुक्कुट उत्पाद शामिल हैं, को लिया जाता है।

प्रमुख कृषि विधियाँ (Major Farming Methods)
जीविकोपार्जी कृषि (Subsistence Farming) इसके अंतर्गत न्यूनतम भूमि से अधिकतम उपज ली जाती है और
उपज का अधिकांश भाग कृषक अपने परिवार के सदस्यों की उदरपूर्ति के लिये प्रयोग करता है।
इस प्रकार की कृषि प्राय: मानसून, मृदा की प्राकृतिक उर्वरता और फसल उगाने के लिये पर्यावरणीय परिस्थितियों पर निर्भर करती है।
* इसे 'गहन कृषि' या 'जीवन निर्वाह कृषि' भी कहते हैं। विश्व की लगभग आधी जनसंख्या इसी कृषि पर निर्भर है।
स्थानांतरी कृषि (Shifting Cultivation) यह कृषि की सबसे प्राचीन विधि है। इसके अंतर्गत किसी विशेष स्थल की वनस्पति को काटकर या जलाकर साफ कर दिया जाता है और फिर उस पर कृषि की जाती है, अत: इसे 'कर्तन एवं दहन प्रणाली' या 'पैड़ा पद्धति' कहते हैं।


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