वायुमंडल (Atmosphere) |
1. नाइट्रोजन: इस गैस की प्रतिशत मात्रा सभी गैसों से अधिक हैं. नाइट्रोजन की उपस्थिति के कारण ही वायुदाब, पवनों की शक्ति और प्रकाश के परावर्तन का आभास होता है. इस गैस का कोई रंग, गंध या स्वाद नहीं होता. नाइट्रोजन का सबसे बड़ा लाभ यह है कि यह वस्तुओं को तेजी से जलने से बचाती है. अगर वायुमंडल में नाइट्रोजन ना होती तो आग पर नियंत्रण रखना कठिन हो जाता. नाइट्रोजन से पेड़-पौधों में प्रोटीनों का निर्माण होता है, जो भोजन का मुख्य का अंग है. यह गैस वायुमंडल में 128 किलोमीटर की ऊंचाई तक फैली हुई है.
2. ऑक्सिजन-: यह अन्य पदार्थों के साथ मिलकर जलने का कार्य करती है. ऑक्सिजन के अभाव में हम ईधन नहीं जला सकते. यह ऊर्जा का मुख्य स्त्रोत है. यह गैस वायुमंडल में 64 किलोमीटर की ऊंचाई तक फैली हुई है, पर 16 किलोमीटर से ऊपर जाकर इसकी मात्रा बहुत कम हो जाती है.
3. कार्बन-डाई-ऑक्साइड- : यह सबसे भारी गैस है और इस कारण यह सबसे निचली परत में मिलती है फिर भी इसका विस्तार 32 किमी की ऊंचाई तक है. यह गैस सूर्य से आने वाली विकिरण के लिए पारगम्य और पृथ्वी से परावर्तित होने वाले विकिरण के लिए अपारगम्य है.
4. ओजोन- : यह गैस ऑक्सिजन का ही एक विशेष रूप है. यह वायुमंडल में अधिक ऊंचाइयों पर ही अति न्यून मात्रा में मिलती है. यह सूर्य से आने वाली तेज पराबैंगनी विकिरण (Ultraviolet Radiations) के कुछ अंश को अवशोषित कर लेती है. यह 10 से 50 किमी की ऊंचाई तक केंद्रित है. वायुमंडल में ओजोन गैस की मात्रा में कमी होने से सूर्य की पराबैंगनी विकरण अधिक मात्रा में पृथ्वी पर पहुंच कर कैंसर जैसी भयानक बीमारियां फैला सकती हैं.
5. जलवाष्प वायुमंडल में आयतानुसार 4% जलवाष्प की मात्र सदैव विद्दमान रहती है. जलवाष्प की सर्वाधिक मात्र भूमध्य रेखा के आसपास और न्यूनतम मात्र ध्रुवों के आसपास होती है. भूमि से 5 किमी. तक के ऊंचाई वाले वायुमंडल में समस्त जलवाष्प का 90% भाग होता है. जलवाष्प सभी प्रकार के संघनन एवं वर्षण सम्बन्धी मौसमी घटनाओं के लिए जिम्मेदार होती है. ज्ञातव्य है कि वायुमंडल में जलमंडल का 0.001 % भाग सुरक्षित रहता है.
वायुमंडल की संरचना
वायुमंडल की संरचना के सम्बन्ध में 20वीं शताब्दी में विशेष अध्ययन किये गए हैं. इस दिशा में तिज्रांस-डि-बोर, सर नेपियर शाॅ, फ्रैडले, कैनली, फेरेब आदि वैज्ञानिकों का विशेष योगदान रहा है. तापमान के उर्ध्वाधर वितरण के आधार पर वायुमंडल के प्रमुख परतें (important layers) निम्नलिखित हैं – –
i) D का विस्तार 80-96 कि.मी. तक है, यह पार्ट दीर्घ रेडियो तरंगों को परावर्तित करती है.
ii) E1 परत (E1 layer) 96 से 130 कि.मी. तक और E2 परत 160 कि.मी. तक विस्तृत हैं. E1 और E2 परत मध्यम रेडियो तरंगों को परावर्तित करती है.
iii) F1 और F2 परतों का विस्तार 160-320 कि.मी. तक है, जो लघु रेडियो तरंगो (radio waves) को परावर्तित करते हैं. इस परत को एप्लीटन परत (appleton layer) भी कहते हैं.
iv) G परत का विस्तार 400 कि.मी. तक है. इस परत (layer) की उत्पत्ति नाइट्रोजन के परमाणुओं व पराबैगनी फोटोंस (UV photons) की प्रतिक्रिया से होती है.
1. विकिरण (Radiation) : किसी पदार्थ को ऊष्मा तरंगों के संचार द्वारा सीधे गर्म होने को विकिरण कहते है। सूर्य से प्राप्त होनेवाली किरणों से पृथ्वी तथा उसका वायुमंडल गर्म होते है। यही एकमात्र ऐसी प्रकिया है, जिससे ऊष्मा बिना किसी माध्यम के, शून्य के होकर भी यात्रा कर सकती है। सूर्य से आने वाली किरणें लघु तरंगों वाली होती है , जो वायुमंडल को बिना अधिक गर्म किये ही उसे पार करके पृथ्वी तक पहुँच जाती है। पृथ्वी पर पहुँची हुई किरणों का बहुत सा भाग पुनः वायुमण्डल में चला जाता है। इसे भौमिक विकिरण कहते है। भौमिक विकिरण अधिक लम्बी तरंगों वाली किरण होती है ,जिसे वायुमण्डल सुगमता से अवशोषत कर लेता है। अतः वायुमंडल सूर्य से आने वाले सौर विकिरण की अपेक्षा भौमिक विकिरण से अधिक गर्म होता है
2. संचालन (Conduction) : जब असमान ताप वाली दो वस्तुएँ एक दूसरे के संपर्क में आती है, तो अधिक तापमान वाली वस्तु से कम तापमान वाली वस्तु की और ऊष्मा प्रवाहित होती है। ऊष्मा का यह प्रवाह तब तक चलता है जब तक दोनों वस्तुओं का तापमान एक जैसा न हो जाय। वायु ऊष्मा की कुचलक है। अतः संचालन प्रक्रिया वायुमण्डल को गर्म करने के लिए सबसे कम महत्वपूर्ण है। इससे वायुमंडल की केवल निचली परतें ही गर्म होती है।
3. संवहन (Convection) : किसी गैसीय अथवा तरल पदार्थ के एक भाग से दूसरे भाग की और उसके अणुओं द्वारा ऊष्मा के संचार को संवहन कहते है। यह संचार गैसीय तथा तरल पदार्थों में इसलिय होता है कि क्योंकि उसके अणुओं के बीच का सम्बन्ध कमजोर होता है। यह प्रक्रिया ठोस पदार्थों में नहीं होती है। जब वायुमंडल की निचली परत भौमिक विकिरण अथवा संचलन से गर्म हो जाती है तो उसकी वायु फैलती है। जिससे उसका धनत्व कम हो जाता है। घनत्व कम होने से वह हल्की हो जाती है और ऊपर को उठती है। इस प्रकार वह वायु निचली परतों की ऊष्मा को ऊपर ले जाती है। ऊपर की ठंडी वायु उसका स्थान लेने के लिए नीचे आती है और कुछ देर बाद वह भी गरम हो जाती है। इस प्रकार संवहन प्रक्रिया द्वारा वायुमंडल क्रमश: निचे से ऊपर गर्म होता रहता है। वायुमंडल गर्म होने में यह मुख्य भूमिका निभाता है।
4. अभिवहन (Advection) : इस प्रक्रिया में ऊष्मा का क्षैतिज दिशा में स्थनांतरण होता है। गर्म वायु राशियाँ जब ठंडे इलाकों में आती है , तो उन्हें गर्म कर देती है। इससे ऊष्मा का संचार निम्न अक्षांशीय क्षेत्रों से उच्च अक्षांशीय क्षेत्रों तक भी होता है। वायु द्वारा संचालित समुंद्री धाराएं भी उच्च कटिबंधों से ध्रुवीय क्षेत्रों में ऊष्मा का संचार करती है। समताप रेखा
भूमण्डल पर ताप के क्षेतिज वितरण को प्रदर्शित करने के लिए समताप रेखाओं का प्रयोग किया जाता हैं। समताप रेखाएं वे कल्पित रेखाएं हैं जो समान ताप वाले स्थानों को मिलाते हुए खींची जाती हैं। इन्हे खींचने के लिए विभिन्न स्थानो का तापमान ज्ञात किया जाता है, फिर उन स्थानो के तापमानो को सागर तल पर समायोजित किया जाता हैं, अर्थात सभी स्थानों को सागर तल पर मान कर (उंचाई के अन्तर को घटाकर) संशोधित तापमान प्राप्त किए जाते हैं, तत्पश्चार समताप रेखाएं खीची जाती हैं।
दैनिक तापान्तर:-किसी स्थान के किसी दिन-रात के उच्चतम और निम्नतम तापक्रम के अन्दर को दैनिक तापान्तर (Diurnal or Daily Range of Temperature) कहते हैं. उदाहरणार्थ “क” स्थान का किसी दिन का उच्चतम तापक्रम 102° F है और निम्नतम 80° F तो उसका दैनिक तापान्तर 102°-80°= 22° F हुआ. उच्चतम तापक्रम मध्याह्न के उपरान्त (2 या 3 बजे) और निम्नतम भोर में (लगभग 4 बजे) मिलता है.
तापान्तर से मतलब किसी स्थान के उच्चतम तापक्रम (temperature) और निम्नतम तापक्रम के अंतर से होता है.
वार्षिक तापान्तर:-इन दोनों महीनों के औसत तापक्रम के अंतर को वार्षिक तापान्तर (Annual Range of Temperature) कहते हैं. सिर्फ तापान्तर (Rang of Temperature) कहने से भी वार्षिक तापान्तर का अर्थ लिया जाता है. सबसे कम तापान्तर विषुवत् रेखा पर और सबसे अधिक तापान्तर महाद्वीपों के आंतरिक भागों (जैसे मध्य एशिया) में पाया जाता है. जहाँ विषुवत् रेखा पर 5 F° तापान्तर मिलता है, दूसरी तरफ सामुद्रिक प्रभाव से दूर महाद्वीपों के आंतरिक भाग में 100 Fahrenheit तक तापान्तर मिलता है. समुद्र के समीपवर्ती स्थानों में तापान्तर कम होता है.
वायुमंडलीय दाब, पवन एवं वायुराशियाँ
वायुदाब:- भूपृष्ठ पर वायुमण्डल के दाब या भार को वायुमण्डलीय दाब या वायुदाब या वायुभार कहते हैं। पृथ्वी के चारों ओर कई सौ किलोमीटर की ऊँचाई तक वायु का आवरण फैला है। वायु के इस आवरण का धरातल पर भारी दबाव पड़ता है। अनुमान लगाया गया है कि समुद्रतल के समीप प्रति वर्ग सेण्टीमीटर भूमि पर 1.25 किलोग्राम वायुदाब होता है। अत: हम सदैव ही 112 किलोग्राम वायु का भार अपने ऊपर लादे फिरते हैं, किन्तु फिर भी हमें वायु का कोई दबाव अनुभव नहीं होता। इसका कारण यह है कि हमारे चारों ओर वायु का दबाव समान रूप से पड़ता है। हम वायु के इस महासागर के नीचे उसी प्रकार रह रहे हैं जैसे कि समुद्र के अन्दर जल-जीव निवास करते हैं।
समदाब रेखाएँ Isobars:- ये वे कल्पित रेखाएँ हैं जो पृथ्वी के धरातल पर समान वायुदाब वाले स्थानों को जोड़ती हैं। मानचित्रों में वायुदाब इन्हीं रेखाओं द्वारा प्रकट किया जाता है। मानचित्रों में इन रेखाओं को बनाने के पूर्व वायुदाब को सागर तल के वायुदाब में बदल लेते हैं, क्योंकि ऊँचाई के अनुसार वायुदाब कम हो जाता है, अतः यदि किसी स्थान का वायुदाब 650 मिलीबार है और यह सागरतल से 2,750 मीटर ऊँचा है तो उस स्थान का वास्तविक वायुदाब 330 मिलीबार कम है,( ऊपर जाने पर प्रति 100 मीटर पर 12 मिलीबार वायुदाब घटता है) अतः सागरतल पर उसका वायुदाब 980 मिलीबार (650 + 330) होगा।
विषुवत रेखीय न्यून दाब पेटी Equatorial Low Pressure Belt:- यह विषुवत रेखा के समीप 5° उत्तर और दक्षिण के बीच पायी जाती हैं। यहाँ वर्ष भर सूर्य की किरणे सीधी पड़ने के कारण तापमान ऊँचा रहता है, अतः निम्न वायुदाब पाया जाता है। इस क्षेत्र में गरम भूमि के सम्पर्क से वायु भी गरम हो। जाती है और हल्की होकर ऊपर उठती है तथा वायुमण्डल के ऊपरी स्तरों से ठण्डी वायु पृथ्वी के धरातल पर नीचे उतरती है। इस प्रकार वायुमंडल में संवहन धाराएँ ( convectional currents) उत्पन्न हो जाती हैं। पवन धरातल के समान्तर नहीं चलती। इसी कारण इस क्षेत्र को शान्त खण्ड (Doldrums) भी कहते हैं। यहां दोनों ओर से आने वाली स्थायी पवनों का मिलन या अभिसरण (convergence) होता है, अतः इस मेखला को अन्तः उष्णकटिबन्धीय अभिसरण क्षेत्र (Inter-tropical Convergence zone) भी कहते हैं। इस कटिबन्ध में प्रतिदिन वर्षा होती है अतः इसका भी प्रभाव वायुदाब पर पड़ता है।
उपोष्ण उच्च वायुदाब पेटियाँ Tropical High Pressure belt:- उत्तरी और दक्षिणी गोलार्द्ध में 30° और 35° अक्षांशों के बीच में उच्च वायुदाब की मेखलाएँ स्थित हैं। वायुदाब की ये मेखलाएँ पृथ्वी की गति के कारण उत्पन्न होती हैं। इन मेखलाओं में वायु सदा ऊपर से नीचे उतरती है, अतः उनका दाव बढ़ जाता है। इन मेखलाओं को अश्व अक्षांश (Horse Latitudes) भी कहा जाता है, क्योंकि मध्ययुग में पालदार जलयानों से यात्रा करते समय अपनेअपने साथ घोड़े, आदि ले इन मेखलाओं में आने पर जलयान शान्त पेटियों के कारण आगे चल नहीं पाते थे, अतः जहाजों का भार हल्का करने के लिए घोड़ों को समुद्र में फेंक दिया करते थे। इस कारण इन मेखलाओं को अश्व अक्षांश कहा जाता है। पवनों की गति अधोमुखी होने के कारण इन कटिबन्धों में पवन संचार बहुत धीमा रहता है, अतः इन कटिबन्धों को शान्त कटिबंध (Belt of Calm) भी कहते हैं।
उपध्रुवीय न्यून वायुदाब पेटियां Sub Polar Low Pressure Belts:- ये 60° से 66½° के बीच पायी जाती हैं। इनमें न्यून वायुदाब पाया जाता है।
ध्रुवीय उच्च वायुदाब पेटियाँ Polar High Pressure Belts:- ध्रुव वृतों से ध्रुवों की ओर जाने पर वायुदाब बढ़ता जाता है। ध्रुवों के निकट तो उच्च वायुदाब का एक विशेष क्षेत्र बन जाता है। जिस प्रकार विषुवत् रेखा के निकट न्यून वायुदाब का कारण तापमान की अधिकता है, उसी प्रकार ध्रुवों के समीप उच्च वायुदाब का कारण तापमान की न्यूनता है
ठहरी हुई वायु (air) को हवा तथा गतिमान वायु को पवन (wind) कहा जाता है, लेकिन सामान्यतः दोनों को एक ही माना जाता है.
इन पवनों को मुख्य तौर तीन प्रकारों में बांटा जा सकता है. (क.) स्थायी पवनें (Permanent wind) (ख.) दैनिक एवं मौसमी पवनें (Daily and seasonal wind) (ग.) स्थानीय पवनें (Local wind).
स्थायी पवनें – Permanent wind:- स्थायी पवनें आधारभूत और व्यापक पवन संचार प्रणाली है इन्हें वायुमंडल का प्राथमिक परिसंचरण कहा जाता है. प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष रूप से विभिन्न वायुमंडलीय हलचलें या परिघटना स्थायी पवन से संबंधित है. स्थायी पवनों को प्रचलित पवनें (popular wind) भी कहा जाता है.
मौसमी पवन एवं दैनिक पवन Seasonal wind & Daily wind:- मौसमी पवन मौसम विशेष में उत्पन्न होने वाली पवन है. यह मौसमी प्रभाव उत्पन्न करते है और मौसम परिवर्तन के साथ समाप्त भी हो जाते है. मौसमी पवनों का क्षेत्र अधिक व्यापक नहीं होता है. यह मुख्यतः दिन एवं रात के तापमान में अंतर के कारण उत्पन्न होती है. दैनिक पवनों को इस श्रेणी में रखा जा सकता है क्योंकि दैनिक पवनों की उत्पत्ति दिन एवं रात में मौसमी परिवर्तन के कारण होती है.
स्थानीय पवन – Local wind:- Local wind वायुमंडल के विशिष्ट परिसंचरण प्रणाली है. यह मुख्यतः स्थानीय स्तर पर तापमान एवं वायुदाब की विशिष्ट दशाओं के परिणामस्वरूप उत्पन्न होती है. कई विशिष्ट स्थानीय पवनें प्रत्यक्षतः वायुमंडल की द्वितीय परिसंचरण प्रणाली जैसे चक्रवात एवं प्रतिचक्रवात से संबंधित होती है इसी कारण इन्हें वायुमंडल का तृतीय परिसंचरण कहा जाता है.
- भारत की भौगोलिक स्थिति एवं विस्तार (Geographical location and extent of India)
- भारत की प्रमुख झीलें (Major lakes of India)
- भारत की नदियाँ (Rivers of India)
- भारत के प्रमुख जल प्रपात (Major waterfalls of India)
- भारत की जलवायु (Climate of India)
- भारत की मिट्टियाँ (Soils of India)
- भारत में कृषि (Agriculture in India)
- भारत में सिंचाई (Irrigation in India)
- भारत में खनिज (Minerals in India)
- भारत के प्रमुख उद्योग (Major Industries of India)
- भारत में परिवहन (Transportation in India)
- भारत की जनगणना (Census of India)
- भारत की प्रमुख बहुउद्देशीय नदी घाटी परियोजनाएं (Major Multipurpose River Valley Projects of India)
- भारत में पर्वतीय नगर(Hill cities in india)
- भारत के प्रमुख भौगोलिक उपनाम (Major Geographical Surnames of India)
- भारत की प्रमुख जनजातियां और नृत्य (Major tribes and dances of India)
- भारत का भूगोल प्रश्न एवं उत्तर (India's geography questions and answers)
- भूगोल का अर्थ (Meaning of geography)
- सौर मंडल (Solar System)
- पृथ्वी की गतियाँ (Motions of the earth)
- पृथ्वी की भौगोलिक रेखाएं (Geographic lines of the earth)
- स्थलमंडल (Lithosphere)
- महाद्वीप (Continent)
- जलमंडल(Hydrosphere)
- महासागरीय जलधाराएं (Ocean streams)
- वायुमंडल (Atmosphere)
- विश्व की प्रमुख फसलें एवं उत्पादक देशों की सूची(List of major crops and producing countries of the world)
- विश्व के सर्वाधिक खनिज उत्पादक देश (World's Most Mineral Producing Countries)
- विश्व के औद्योगिक क्षेत्र (Industrial regions of the world)
- विश्व की प्रमुख जनजातियाँ (Major tribes of the world)
- विश्व के प्रमुख देश उनकी राजधानी एवं उनकी मुद्राओं (Major countries of the world, their capital and their currencies)
- विश्व के प्रमुख भौगोलिक उपनाम (World's major geographical surname)
- विश्व के प्रमुख भौगोलिक खोजें (Top World Geographic Searches)
- विश्व के प्रमुख नहरें (Major canals of the world)
- प्रमुख वनस्पतियॉं और उनका वर्गीकरण(Major flora and their classification)
- विश्व के भू-आवेष्ठित देश (Land covered countries of the world)
- विश्व की प्रमुख झीलें (Major lakes of the world)
- विश्व की प्रमुख पर्वत चोटियाँ (Major Mountains of the World)
- विश्व के प्रमुख द्वीप(Major islands of the world)
- विश्व के प्रमुख पठार(Major plateaus of the world)
- विश्व के प्रमुख रेगिस्तान (Major deserts of the world)
- विश्व भूगोल के महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तरी(Important quiz of world geography)
- कंप्यूटर ज्ञान
- जीव विज्ञान
- भौतिक विज्ञान
- रसायन विज्ञान
- भूगोल
- इतिहास
- राजनीतिक विज्ञानं
- उत्तराखंड सामान्य ज्ञान
- करंट अफेयर
- भारतीय फौज के बहादुरों की कहानी
- धार्मिक स्थल
- दर्शनीय स्थल
- उत्तराखंड समाचार
- उत्तराखंड की फोटो
- नई शिक्षा निति
- भरतु की ब्वारी के किस्से - नवल खाली
- ACTRESS PHOTO
- UTTRAKHAND PHOTO GALLERY
- UTTRAKHANDI VIDEO
- JOB ALERTS
- FORTS IN INDIA
- THE HINDU NEWS IN HINDI
- उत्तराखंड से सम्बंधित अन्य कोई भी जानकारी (euttra.com)
- Govt Schemes
Comments
Post a Comment