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महासागरीय जलधाराएं किसे कहते है और कौन कौन सी है? | What are Ocean streams and What are ??

 

महासागरीय जलधाराएं (Ocean streams)


एक निश्चित दिशा में बहुत अधिक दूरी तक महासागरीय जल की एक विशाल जल-राशि के प्रवाह को महासागरीय जलधारा कहते हैं ।

यह धारा दो प्रकार की होती है - गर्म जलधारा और ठंडी जलधारा।

गर्म जलधारा :- निम्न अक्षांशों में उष्ण-कटिबंधो से उच्च सम शीतोष्ण और उपध्रुवीय कटिबंधो की ओर बहने वाली जल- धाराओं को गर्म जलधारा कहते हैं ।

ये प्रायः भूमध्य रेखा से ध्रुवों की ओर चलती है ।

इनके जल का तापमान मार्ग में आने वाले जल के तापमान से अधिक होता है । अतः यह धाराएं जिन क्षेत्रों में चलती है वहां का तापमान बढ़ा देती है।

ठंडी जलधारा :- उच्च अक्षांशों से निम्न अक्षांशों की ओर बहने वाली जलधारा को ठंडी जलधारा कहते हैं ।

ये प्रायः ध्रुवो से भूमध्य रेखा की ओर चलती है ।

इनके जल के तापमान रास्ते आने वाले जल के तापमान से कम होता है । अतः ये धाराएं जिन क्षेत्रों में चलती है ,वहां तापमान घटा देती है।

उत्तरी गोलार्ध की जलधाराएं अपने दाएं ओर तथा दक्षिणी गोलार्ध की जल धाराएं बाएं ओर प्रवाहित होती है यह कोरियालिस बल के प्रभाव से होता है।

महासागरीय जल धाराओं के संचरण की सामान्य व्यवस्था का एकमात्र प्रसिद्ध अपवाद हिंद महासागर के उत्तरी भाग में पाया जाता है । इस भाग में धाराओं के प्रवाह की दिशा मानसूनी पवन की दिशा के साथ बदल जाती है - गर्म जलधाराएं ठंडी सागर की ओर और ठंडी जलधाराएं गर्म सागर की ओर बहने लगती है।

प्रशांत महासागर की गर्म जलधाराए :-

  • उत्तरी विषुवत रेखीय जलधारा
  • कयूरोसियो की जलधारा।
  • उत्तरी प्रशांत जल - प्रवाह
  • अलास्का की जलधारा
  • एलनीनो जलधारा
  • सुशीमा की जलधारा
  • दक्षिण विषुवतरेखीय जलधारा
  • पूर्वी आस्ट्रेलिया की जलधारा
  • विपरीत विषुवतरेखीय जलधारा


  • क्यूराइल विषुवत रेखीय जलधाराा
  • कैलिफोर्निया की जलधाराा
  • हम्बोल्ट या पेरूवियन की जलधाराा
  • अंटार्कटिका की जलधाराा
  • अटलांटिक महासागर की गर्म जल धाराएं :-

  • उत्तरी विषुवत रेखीय जलधारा
  • गल्फ स्ट्रीम जलधारा
  • फ्लोरिडा जल धारा
  • दक्षिणी विषुवत रेखीय जलधारा
  • ब्राजील जलधारा
  • विपरीत विषुवत रेखीय गिनी जलधारा
  • ईरमिंजर की जलधारा


  • लेबराडोर की जलधारा
  • वेंगुला की जलधारा
  • कनारी जलधारा
  • पूर्वी ग्रीनलैंड की जलधारा
  • अंटार्कटिका की जलधारा
  • फ़ॉकलैंड की जलधारा

    हिंद महासागर की गर्म एवं स्थाई जलधाराएं :-

  • अदक्षिण विषुवत रेखीय जलधारा
  • अमोजांबिक की जलधारा
  • अ अगुलहास की जलधारा


  • पश्चिम ऑस्ट्रेलिया की जलधारा।
  • नोट :- हिंद महासागर की ग्रीष्मकालीन मानसून की जलधारा गर्म एवं परिवर्तनशील जलधारा है एवं शीतकालीन मानसून हवा ठंडी एवं परिवर्तनशील जलधारा है।

    सारगैसो सागर :- उत्तरी अटलांटिक महासागर में 20°से40° उत्तरी अक्षांश तथा 35° से 75° पश्चिमी देशांतरो के मध्य चारों ओर प्रवाहित होने वाली जलधाराओं के मध्य स्थित शांत एवं स्थिर जल के क्षेत्र को सारगैसो सागर के नाम से जाना जाता है ।

    यह गल्फ स्ट्रीम, कनारी तथा उत्तरी विषुवतीय धाराओं के चक्र बीच स्थित शांत जल क्षेत्र है । इसके तट पर मोटी समुद्री घास तैरती है । इस घास को पुर्तगाली भाषा में सारगैसम कहते हैं ,जिसके नाम पर ही इसका नाम सारगैसो सागर रखा गया है । सारगैसम जड़ विहीन घास है ।

    सारगैसो सागर क्षेत्रफल लगभग 11000 वर्ग किलोमीटर है । यहां अटलांटिक की सर्वाधिक लवणता का तापमान मिलती है।

    सारगैसो सागर को सर्वप्रथम स्पेन के नाविकों ने देखा था।

    सारगैसो सागर को महासागरीय मरुस्थल के रुप में पहचाना जाता है।

    न्यूफौलैंड के समीप ही गल्फस्ट्रीम एवं लेब्राडोर जलधारा मिलती है।

    न्यूफाउंडलैंड पर ही समुद्री मछली पकड़ने का प्रसिद्ध स्थान ग्रैंड बैंक उत्तरी अटलांटिक महासागर में स्थित है।

    गर्म एवं ठंडी जलधारा जहां मिलती है वहां प्लेकटन नामक घास मिलती है। जिससे उस स्थान पर मत्स्य उद्योग अत्यधिक विकसित हुआ है।

    जापान के निकट कयूरोसियो की गर्म जल धारा तथा अयोसियो की ठंडी जलधारा के जल के मिलने से वहां पर घना कुहासा छाया रहता है।

    ज्वार-भाटा

    ज्वार-भाटा वे तरंग हैं वे सागरीय तरंगे हैं, जो पृथ्वी, चाँद और सूर्य के आपस के आकर्षण से उत्पन्न होते हैं. जब समुद्री जल ऊपर आती है तो उसे “ज्वार” और जब नीचे आती है तो “भाटा” कहते हैं. चंद्रमा के आकर्षण शक्ति का पृथ्वी के सागरीय जल पर सर्वाधिक प्रभाव पड़ता है.

  • चंद्रमा सूर्य से 2.6 लाख गुना छोटा है लेकिन सूर्य की तुलना में 380 गुना पृथ्वी के अधिक समीप है. फलतः चंद्रमा की ज्वार उत्पादन की क्षमता सूर्य की तुलना में 2.17 गुना अधिक है.
  • पृथ्वी का जो सतह है, surface है…वह अपने केंद्र की तुलना में चंद्रमा से लगभग 6400 km. निकट है. अतः पृथ्वी के उस भाग में जो चाँद के सामने होता है, आकर्षण अधिकतम होता है और ठीक उसके दूसरी ओर न्यूनतम.
  • इस आकर्षण के प्रभाव के कारण चंद्रमा के सामने स्थित जलमंडल का जल ऊपर उठ जाता है, जिसके फलस्वरूप वहाँ ज्वार आता है.
  • दो ज्वार वाले स्थानों के बीच का जल ज्वार की ओर खिंच जाने के कारण बीच में समुद्र का तल सामान्य से नीचे चले जाता है, जिससे वहाँ भाटा उत्पन्न होता है.
  • एक दिन में प्रत्येक स्थान पर सामान्यतः दो बार ज्वार एवं दो बार भाटा पृथ्वी की घूर्णन के कारण आता है.

  • दीर्घ अथवा उच्च ज्वार (SPRING TIDE)- अमावस्या और पूर्णिमा के दिन सूर्य, चंद्रमा और पृथ्वी तीनों में एक सीध में होते होते हैं. इन तिथियों में सूर्य, चंद्रमा और पृथ्वी के संयुक्त प्रभाव के कारण ज्वार की ऊँचाई सामान्य ज्वार से 20% अधिक होती है. इसे वृहद् ज्वार या उच्च ज्वार कहते हैं.

    लघु या निम्न ज्वार (NEAP TIDE)- शुक्ल या कृष्ण पक्ष की सप्तमी या अष्टमी को सूर्य और चंद्रमा पृथ्वी के केंद्र पर समकोण बनाते हैं. इस कारण सूर्य और चंद्रमा दोनों ही पृथ्वी के जल को भिन्न दिशाओं में आकर्षित करते हैं. फलतः इस समय उत्पन्न ज्वार औसत से 20% कम ऊँचे होते हैं. इसे लघु या निम्न ज्वार कहते हैं.

    दैनिक ज्वार (DIURNAL TIDE)- स्थान पर दिन में केवल एक बार ज्वार-भाटा आता है, तो उसे दैनिक ज्वार-भाटा कहते हैं. दैनिक ज्वार 24 घंटे 52 मिनट के बाद आते हैं. मैक्सिको की खाड़ी और फिलीपाइन द्वीप समूह में दैनिक ज्वार आते हैं.

    अर्द्ध-दैनिक ज्वार (SEMI-DIURNAL)- जब किसी स्थान पर दिन में दो बार (12 घंटे 26 मिनट में) ज्वार-भाटा आता है, तो इसे अर्द्ध-दैनिक ज्वार कहते हैं. ताहिती द्वीप और ब्रिटिश द्वीप समूह में अर्द्ध-दैनिक ज्वार आते हैं.

    मिश्रित ज्वार (MIXED TIDE)- जब समुद्र में दैनिक और अर्द्ध दैनिक दोनों प्रकार के ज्वार-भाटा का अनुभव लेता है, तो उसे मिश्रित ज्वार-भाटा कहते हैं.

    अयनवृत्तीय और विषुवत रेखीय ज्वार- चंद्रमा के झुकाव के कारण जब इसकी किरणें कर्क या मकर रेखा पर सीधी पड़ती हैं, जो उस समय आने-वाले ज्वार को अयनवृत्तीय कहते हैं. इस अवस्था में ज्वार और भाटे की ऊँचाई में असमानता होती है. जब चाँद की किरणें विषुवत रेखा पर लम्बवत पड़ती है तो उस समय जवार-भाटे की स्थिति में असमानता आ जाती है. ऐसी अवस्था में आने वाले ज्वार को विषुवत रेखीय ज्वार कहते हैं.


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     सामान्य परिचय (General Introduction) कम समय एवं बिना चेतावनी के घटित होने वाली अनापेक्षित प्राकृतिक या मानव जनित घटना या परिवर्तन जिससे संबंधित क्षेत्र के मनुष्य, पशु-पक्षी, प्राकृतिक एवं सांस्कृतिक पर्यावरण दुष्प्रभावित हों, आपदा कहा जा सकता है। इन दुष्प्रभावों में मनुष्यों एवं पशु-पक्षियों की मौत, पेड़ - पौधों का विनाश, मानव निर्मित वातावरण, जैसे- इमारतें , सड़कें, पुल आदि की क्षति कम या ज़्यादा मात्रा में हो सकती है। सामान्यतया आपदाएँ प्राकृतिक कारणों से उत्पन्न होती हैं लेकिन मानव द्वारा प्रकृति में अवाछित हस्तक्षेप से अप्रत्यक्ष रूप से कुछ आपदाओं की तीव्रता एवं बारंबारता में वृद्धि देखी जा सकती है। कुछ आपदाएँ तो पूरी तरह मानव जनित होती हैं। प्राकृतिक आपदाओं को भी उनकी उत्पत्ति के प्रमुख कारकों के आधार पर निम्नलिखित तरीके से वर्गीकृत किया जाता है- भौमिक आपदाएँ-भूकंप, ज्वालामुखी, भूस्खलन इत्यादि जलीय आपदाएँ-बाढ़, सुनामी इत्यादि मौसम संबंधी आपदाएँ-सूखा, चक्रवात, बादल का फटना, हिम झंझावत, तड़ित झंझा (Thunderstorm), शीत लहर, पाला, लू इत्यादि नोट: द्वितीय प्रशासनिक सुधार आयोग की तीसरी र

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      वायुमंडल (Atmosphere)      पृथ्वी को चारों ओर से घेरे हुए वायु के विस्तृत फैलाव को पृथ्‍वी का वायुमंडल (Earth atmosphere) कहते हैं. वायुमंडल की ऊपरी परत के अध्ययन को वायुविज्ञान (Aerology) और निचली परत के अध्ययन को ऋतु विज्ञान (Meterology) कहते हैं. आयतन के अनुसार वायुमंडल में 30 मील के अंदर विभिन्न गैसों का मिश्रण होता है जो इस प्रकार हैं- नाइट्रोजन 78.07 फीसदी, ऑक्सिजन 20.93 फीसदी, कॉर्बन डाईऑक्साइड .03 फीसदी और आर्गन .93 फीसदी. वायुमंडल में पाई जाने वाली कुछ महत्वपूर्ण गैस 1. नाइट्रोजन:   इस गैस की प्रतिशत मात्रा सभी गैसों से अधिक हैं. नाइट्रोजन की उपस्थिति के कारण ही वायुदाब, पवनों की शक्ति और प्रकाश के परावर्तन का आभास होता है. इस गैस का कोई रंग, गंध या स्वाद नहीं होता. नाइट्रोजन का सबसे बड़ा लाभ यह है कि यह वस्तुओं को तेजी से जलने से बचाती है. अगर वायुमंडल में नाइट्रोजन ना होती तो आग पर नियंत्रण रखना कठिन हो जाता. नाइट्रोजन से पेड़-पौधों में प्रोटीनों का निर्माण होता है, जो भोजन का मुख्य का अंग है. यह गैस वायुमंडल में 128 किलोमीटर की ऊंचाई तक फैली हुई है. 2. ऑक्सिजन-:   यह अन्य

    स्थलमंडल किसे कहते है ? | What is a lithosphere?

      स्थलमंडल (Lithosphere)      स्थलमण्डल सम्पूर्णपृथ्वी के क्षेत्रफल का 29% है। पृथ्वी के अन्दर तीन मण्डल पाए जाते हैं। ऊपरी मण्डल को भूपर्पटी अथवा क्रस्ट कहा जाता है। इसकी मोटाई 30 से 100 किमी तक होती है। महाद्वीपों में इसकी मोटाई अधिक जबकि महासागरों में या तो क्रस्ट होती ही नहीं अगर होती है तो बहुत पतली होती है। क्रस्ट का ऊपरी भाग स्थलमण्डल का प्रतिनिधित्व करता है। जिन पदार्थों से क्रस्ट का निर्माण होता है वे जैव समुदाय के लिए बहुत महत्त्वपूर्ण हैं। क्रस्ट का निर्माण मुख्यतः लोहा, ऑक्सीजन, सिलिकॉन, मैग्नीशियम, निकिल, गंधक, कैल्शियम तथा ऐलुमिनियम से होता है। क्रस्ट में एल्युमिनियम तथा सिलिका की मात्रा अधिक होती है। क्रस्ट के नीचे के दूसरे मण्डल को मैण्टिल कहा जाता है जिसकी निचली सीमा 2900 किमी से पृथ्वी के केन्द्र तक है। चट्टान पृथ्वी की सतह का निर्माण करने वाले पदार्थ चट्टानें या षैल कहलाते हैं। बनावट की प्रक्रिया के आधार पर चट्टानों को तीन भागों में विभाजित किया जाता है। आग्नेय चट्टान ये चट्टानें भी चट्टानों में सबसे ज्यादा (95%) मिलती है। इनका निर्माण ज्वालामुखी उद्गार के समय निकलने

    विश्व के सर्वाधिक खनिज उत्पादक देश कौन कौन से है ? |Which are World's Most Mineral Producing Countries ?

      विश्व के सर्वाधिक खनिज उत्पादक देश (World's Most Mineral Producing Countries) खनिज उत्पादक देश लोहा चीन , आस्ट्रेलिया , ब्राजील तांबा चिली , पेरू , चीन मैंगनीज चीन , द. अफ्रीका , आस्ट्रेलिया बॉक्साइट ऑस्ट्रेलिया , ब्राजील , चीन सोना चीन , ऑस्ट्रेलिया , अमेरिका जस्ता (जिंक) चीन , आस्ट्रेलिया , पेरू हीरा रूस , बोत्सवाना , कांगो निकिल रूस , इंडोनेशिया , आस्ट्रेलिया चांदी मैक्सिको , पेरू , चीन सीसा (लेड) चीन , ऑस्ट्रेलिया , अमेरिका अभ्रक (माइका) चीन , अमेरिका , द. कोरिया ग्रेफाइट चीन , भारत , ब्रजील क्रोमाइट द. अफ्रीका , कजाखस्तान , भारत टंगस्टन चीन , रूस , बोलिविया कोबाल्ट कांगो , चीन