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प्राकृतिक वनष्पति (Natural Vegetation)

 


सामान्य परिचय (General Introduction) 'वनस्पति' से तात्पर्य वृक्षों, झाड़ियों, घासों, बेलों और लताओं आदि के समूह अथवा पौधों की विभिन्न प्रजातियों से है जो एक निश्चित पर्यावरण में पाई जाती हैं।

जब वनस्पति लंबे समय तक बिना किसी बाहुय मानवीय हस्तक्षेप के वहाँ पाई जाने वाली मिट्टी और जलवायविक परिस्थितियों में अपने आप को ढालकर स्वत: विकास करती या उगती है तो उसे 'प्राकृतिक वनस्पति' कहते हैं।

वनस्पति और वन में एक मूल अंतर यह है कि वन व्यापक रूप से संपूर्ण वनस्पतियों (प्राकृतिक/अप्राकृतिक), वन्यजीवों एवं आस-पास के वातावरण को समाहित करता है एवं इसका हमारे लिये आर्थिक महत्त्व होता है।

* ज़मीन की ऊँचाई और वनस्पति की विशेषता के बीच एक करीबी रिश्ता है। ऊँचाई में परिवर्तन के साथ जलवायु भिन्नता होती है, जिसके कारण प्राकृतिक वनस्पति का स्वरूप बदलता है। वनस्पति का विकास तापमान और नमी पर निर्भर करता है। यह मिट्टी की मोटाई और ढलान जैसे कारकों पर भी निर्भर करता है ।

भारत में प्राकृतिक वनस्पतियों के संदर्भ में व्यापक विविधता पाई जाती है। यहाँ पर उष्ण आर्द्र सदाबहार वनस्पतियों से लेकर मरुस्थलीय व अल्पाइन वनस्पतियाँ भी पाई जाती हैं। थार मरुस्थल एवं गंगा मैदान के पश्चिमी सीमांत भाग, भारत के उत्तर-पूर्व में स्थित पहाड़ियों एवं कुछ अन्य स्थानों पर विदेशी पौधों की प्रजातियाँ भी पाई जाती हैं।

भारत अपने स्थानीय/स्थानिक प्राकृतिक पौधों की प्रजातियों हेतु विश्व प्रसिद्ध है। यहाँ प्राकृतिक वनस्पतियों की लाखों प्रजातियाँ पाई जाती हैं, जिनमें से कई प्रजातियों का औषधीय महत्त्व है।

वनस्पति का वितरण तथा प्रकार (Type and Distribution of Vegetation)

वर्षा जल की प्राप्ति तथा तापमान के आधार पर भारत की प्राकृतिक वनस्पति को मुख्यत: दो तरह से वर्गीकृत किया जा सकता है-
क्षैतिज वितरण या वर्षा के आधार पर वितरण।
उध्ध्वाधर वितरण या तापमान के आधार पर वितरण।
क्षैतिज वितरण (Horizontal Distribution)

वर्षा की मात्रा में कमी आने के साथ वनस्पति की सघनता, जैवभार एवं जैव-विविधता में भी कमी आती जाती है। अत: भारत में औसत से अधिक वर्षा बाले क्षेत्रों से कम बर्षा बाले क्षेत्रों की ओर जाने पर उष्ण कटिबंधीय वनस्पति का विकास क्रमश: सदाबहार वन, पर्णपाती वन (शुष्क एवं आर्द्र), कँटीले वन, सवाना एवं मरुस्थलीय वनस्पति के रूप में हुआ है।


उष्णकटिबंधीय सदाबहार वनस्पति
(Tropical Evergreen Vegetation)
इस प्रकार की वनस्पतियाँ उन प्रदेशों में पाई जाती हैं, जहाँ वार्षिक वर्षा 250 सेमी. से अधिक होती है तथा औसत वार्षिक तापमान 22° सेल्सियस से अधिक एवं शुष्क मौसम अल्प अवधि के लिये
होता है। इन्हें 'उष्णकटिबंधीय आर्द्र सदापर्णी वनस्पति' भी कहते हैं।

उष्णकटिबंधीय वनों की शुद्ध प्राथमिक उत्पादकता (Net Primary Productivity) भी सर्वाधिक होती है।
भारत में इस प्रकार की वनस्पतियों का विकास पश्चिमी घाट के पश्चिमी ढाल पर, केरल, कर्नाटक, उत्तर-पूर्वी क्षेत्र की पहाड़ियों एवं अंडमान और निकोबार द्वीप समूह में हुआ है।

    इस प्रकार की वनस्पतियों का विकास सघन व विभिन्न स्तरों के रूप में होता है, साथ ही तापमान एवं वर्षा की निरंतर पूर्ति के कारण यहाँ की वनस्पति बहुत तेज़ी से वृद्धि करती है। इसलिये यहाँ पेड़ों की लंबाई 60 मीटर या उससे भी अधिक होती है।
भूमि के नज़दीक झाड़ियों एवं लताओं की शृंखलायें पाई जाती हैं। तथा इन वनस्पतियों की प्रजातियों में सर्वाधिक विविधता पाई जाती


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