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आपदा प्रबंधन (disaster Management)

 सामान्य परिचय (General Introduction)
कम समय एवं बिना चेतावनी के घटित होने वाली अनापेक्षित
प्राकृतिक या मानव जनित घटना या परिवर्तन जिससे संबंधित क्षेत्र
के मनुष्य, पशु-पक्षी, प्राकृतिक एवं सांस्कृतिक पर्यावरण दुष्प्रभावित
हों, आपदा कहा जा सकता है।

इन दुष्प्रभावों में मनुष्यों एवं पशु-पक्षियों की मौत, पेड़ - पौधों का
विनाश, मानव निर्मित वातावरण, जैसे- इमारतें , सड़कें, पुल आदि
की क्षति कम या ज़्यादा मात्रा में हो सकती है।

सामान्यतया आपदाएँ प्राकृतिक कारणों से उत्पन्न होती हैं लेकिन
मानव द्वारा प्रकृति में अवाछित हस्तक्षेप से अप्रत्यक्ष रूप से कुछ
आपदाओं की तीव्रता एवं बारंबारता में वृद्धि देखी जा सकती है।
कुछ आपदाएँ तो पूरी तरह मानव जनित होती हैं।
प्राकृतिक आपदाओं को भी उनकी उत्पत्ति के प्रमुख कारकों के
आधार पर निम्नलिखित तरीके से वर्गीकृत किया जाता है-
भौमिक आपदाएँ-भूकंप, ज्वालामुखी, भूस्खलन इत्यादि
जलीय आपदाएँ-बाढ़, सुनामी इत्यादि
मौसम संबंधी आपदाएँ-सूखा, चक्रवात, बादल का फटना,
हिम झंझावत, तड़ित झंझा (Thunderstorm), शीत लहर,
पाला, लू इत्यादि


नोट: द्वितीय प्रशासनिक सुधार आयोग की तीसरी रिपोर्ट में आपदा
प्रबंधन (Disaster Management) को संकट प्रबंधन (Crisis
Management) के नाम से भी दर्शाया गया है।
भारत में आपदाएँ (Disasters in India)
भारत का अधिकतर भौगोलिक क्षेत्र किसी-न-किसी आपदा के संदर्भ
में सुभेद्य है। भारत का उष्ण कटिबंधीय व शीतोष्ण कटिबंधीय क्षेत्रों
में विस्तार, लंबी तटरेखा, नवीन वलित पर्वतमाला, भूगर्भिक विविधता,
मरुस्थलीय दशाएँ, अति वृष्टि, वृष्टि छाया प्रदेश, नदियों का जाल आदि
कई प्रकार के सुभेद्यता लक्षण अलग-अलग क्षेत्रों में पाये जाते हैं।
भारत में बाढ़, सूखा, चक्रवात, भूकंप तथा भूस्खलन की घटनाएँ
आम हैं। भारत के लगभग 54% भू-भाग पर विभिन्न प्रबलताओं के
भूकंपों का ख़तरा बना रहता है। 40 मिलियन हेक्टेयर से अधिक
क्षेत्र में बारंबार बाढ़ आती है। कुल 7,516.6 किमी. लंबे तटरेखा
में से 5,700 किमी. में चक्रवात का ख़तरा बना रहता है।
भारत में खेती योग्य क्षेत्र का लगभग 68% भाग सूखे के प्रति
संवेदनशील है। अंडमान-निकोबार द्वीप समूह और पूर्वी व पश्चिमी
तटीय क्षेत्रों के इलाकों में सुनामी का संकट बना रहता है। देश के
कई भागों में पतझड़ी व शुष्क पतझड़ी वनों में आग लगना आम
बात है। हिमालयी क्षेत्र तथा पूर्वी व पश्चिमी घाट के क्षेत्रों में अक्सर
भूस्खलन का ख़तरा बना रहता है।



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